माइग्रेन एक प्रकार का दर्द है, जिसका असर सर में एक ही तरफ होता है। ये दर्द अक्सर तेज़ होता है और उसके साथ ही कुछ अन्य लक्षण भी हो सकते हैं जैसे कि चक्कर आना, उलटी, या तेज़ रोशनी और आवाज़ से प्रभावित होना। माइग्रेन दर्द को अक्सर एक या दो दिन तक भी चल सकता है। माइग्रेन का मूल कारण अब तक पूरी तरह से समझ में नहीं आया है, लेकिन इसका कारण यह है कि रक्तवाहिनियों के संकुचन और फैलाव में अनियमिता होती है। हार्मोनल परिवर्तन, खाद्य पदार्थों से होने वाले उत्तेजना, तनाव, नींद की कमी, या व्यक्तिगत प्रकृति आदि भी माइग्रेन के कारण हो सकते हैं।
भारत में माइग्रेन के मामले में सांख्य अनुमान के अनुसार बहुत अधिक है, लेकिन यह सांख्य बढ़ती जा रही है। कुछ अध्ययनों के अनुसार, भारत में लगभाग 10-15% या उससे भी अधिक लोग माइग्रेन से प्रभावित होते हैं। यह बिमारी अधिक्तर महिलाओ में पाई जाती है और काई बार याह जेनेटिक भी होती है, मतलब अगर किसी के परिवार में माइग्रेन की समस्या है, तो उनके अन्य सदस्यों में भी यह समस्या होने के चांस बढ़ जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसर, माइग्रेन को "अर्धवभेदक" या "अर्धकायिका" के रूप में जाना जाता है। अर्ध का अर्थ होता है "अधा" और वभेदका या कायिका का अर्थ होता है "सर दर्द।" माइग्रेन को आयुर्वेद में एक प्रकार का शिरोरोग (मस्तिष्क रोग) की बीमारी के रूप में माना जाता है। इसमे सर के एक ही भाग में होने वाला दर्द होता है, अधिकार एक तरफ (एक आंख, एक कान, एक नाक) और इस दर्द के साथ कुछ लक्षण भी होते हैं जैसे चक्कर आना, उल्टी, और तेज रोशनी या आवाज से प्रभाव होना | आयुर्वेद के अनुसर, माइग्रेन के कारण प्रमुख रूप से दोष विकृति (दोष असंतुलन), मानसिक तनाव, आहार-विहार और वायु दोष के प्रभाव से होता है।
माइग्रेन के लक्षण व्यक्त होते हैं, और कुछ लोगों को दर्द के अलावा अन्य लक्षण भी हो सकते हैं। माइग्रेन का प्रारंभिक लक्षण होने पर, लोग अधिक दर्द को सिर दर्द से अलग नहीं समझते हैं। इसलिए अगर किसी को ऊपर दिए गए लक्षण में से कुछ दिखते हैं, तो वे चिकित्सक से सलाह लेना चाहते हैं, जिसका सही निदान हो सके और सही उपचार की जा सके।
1. एक तरफ का दर्द : माइग्रेन का प्रमुख लक्षण होता है सर में एक तरफ का दर्द होता है। अधिकार लोगों में दर्द एक आंख, एक कान, या एक नाक के इलाके में होता है। दर्द अधिकार एक ही तरफ होता है, पर कभी-कभी दोनों तरफ हो सकता है।
2. तेज़ दर्द : माइग्रेन दर्द तेज़ होता है और धीरे-धीरे आता-जाता रहता है। दर्द अक्सर धड़कता है या धड़कता है।
3. रोशनी और आवाज से प्रभाव होना : माइग्रेन के मरीज़ों को तेज रोशनी और आवाज़ से अधिक प्रभाव होना चाहिए। इसका अर्थ है कि उन्हें प्रकाश और शोर से बचना चाहिए।
4. चक्कर आना : माइग्रेन के दर्द के साथ चक्कर आना भी एक लक्षण हो सकता है।
5. उली (मतली) और उल्टी : माइग्रेन के साथ उल्टी और उलटी की समस्या भी हो सकती है।
6. दृष्टि कमजोरी: माइग्रेन के दर्द के समय, कुछ लोगों को दृष्टि कमजोर (दृश्य गड़बड़ी) भी होती है। इसमे आँखों के आगे अजीब तरह के दिखने या रंगों के भेद-भाव का अनुभव होता है।
1. दोष विकृति: आयुर्वेद के अनुसार, माइग्रेन दोष विकृति (दोष असंतुलन) से होता है। अधिक लोगों में पित्त दोष का विकार माइग्रेन के कारण हो सकता है। जब पित्त दोष विकृत होता है, तो शरीर में अत्यधिक गरमी उत्पन्न होती है, जिसे माइग्रेन के दर्द का कारण हो सकता है।
2. अहार-विहार: आपके खान-पान और दिनचर्या (दैनिक दिनचर्या) भी माइग्रेन के प्रकट होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अधिक मसालेदार, चटपटा, मसलेदार, और गरम भोजन का सेवन माइग्रेन को बढ़ा सकता है। विहार में भी अतियंत तनव, अतिधिक कार्य, या व्यायाम की कमी से माइग्रेन प्रकट हो सकता है।
3. मानसिक तनाव: मानसिक तनाव, चिंता और तनाव भी माइग्रेन के कारण हो सकते हैं। आयुर्वेद में मानसिक स्थिति को दोष विकृति का एक महत्वपूर्ण कारण माना जाता है।
4. रक्तवाह संकुचन: माइग्रेन के दर्द के समय, रक्तवाह (रक्त वाहिकाएं) संकुचित हो जाते हैं, फिर विस्तार हो जाते हैं। क्या प्रकृति में रक्तवाह का संकुचन और विस्तार में दोष विकृति का एक कारण हो सकता है।
5. वायु दोष: वायु दोष का प्रकोप (बढ़ना) भी माइग्रेन के कारण हो सकता है। वायु दोष दोष से मुक्ति और सिर के क्षेत्र में गति होती है और दर्द का कारण हो सकता है।
6. जेनेटिक प्रभाव: कुछ परिवारों में जेनेटिक रूप से माइग्रेन होती है, जिसका अर्थ है कि अगर किसी के परिवार में माइग्रेन की समस्या है, तो उसके अन्य सदस्यों में भी यह समस्या होने की संभावना बढ़ जाती है।
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1. सिरोसुलादिवज्र रस
यह एक आयुर्वेदिक दवा है, जो माइग्रेन के उपचार के लिए इस्तमाल की जाती है। यह औषधि स्वर्ण भस्म, लौह भस्म, वंग भस्म, गंधक, अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, टंकण, शुद्ध हिंगुला, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक जैसी धातुओं और खनिजों से तैयार होती है। सिरोसुलादिवज्र रस के इस्तेमल के फायदे माइग्रेन के रोगियों में प्रभाव हो सकता है, क्योंकि इसमे स्वर्ण भस्म और अन्य धातुओं के मिश्रण से बनी होती है, जो शरीर के दोष विकृति को शमन करने में मददगार हो सकती है।ये दवा माइग्रेन के दर्द को कम करने, सर दर्द के प्रभाव को कम करने, और चक्कर आने जैसे लक्षण को काम करने में मददगार हो सकती है।
2. गोदंती मिश्रण
एक आयुर्वेदिक दवा है, जिसका इस्तेमल माइग्रेन के उपचार में किया जाता है। इसमे "गोदंती भस्म" (जिप्सम) और अन्य धातुओं से बनी भस्मों का मिश्रण होता है। गोदन्ती भस्म माइग्रेन के दर्द को कम करने में मददगार हो सकता है। इस्तमाल से शरीर में दोष विकृति को शमन किया जा सकता है और मस्तिष्क के रक्तवाह को शांत किया जा सकता है। गोदंती मिश्रन के इस्तमाल से शरीर के (एसिडिटी) भी कम हो सकता है, जिसके माइग्रेन के दर्द में कमी आती है।
3. सुतशेखर रस
सूतशेखर रास एक आयुर्वेदिक दवा है, जो पित्त दोष के विकारों से संबंधित व्याधि है, जैसे कि माइग्रेन (माइग्रेन), सर दर्द, तेजाब (एसिडिटी), और चक्कर आना को कम करने में मददगार हो सकता है। इसका काम पित्त दोष को शांत करने और शरीर के दोष स्थिति को शांत करने में होता है। माइग्रेन के लक्षण, जैसे कि एक तरफ का दर्द, चक्कर आना, और तेज रोशनी और आवाज से प्रभाव होना, पित्त दोष के विकृति से संबंध होना। सुतशेखर रस का इस्तमाल पित्त दोष के प्रभाव को कम करने और मस्तिष्क के रक्तवाह को शांत करने में मददगार हो सकता है।
4. ब्राह्मी वटी
ब्राह्मी वटी (बाकोपा मोनिएरी) जैसी जड़ी-बूटियाँ से तैयार होती है। ये दवा पित्त दोष को शांत करने और मस्तिष्क की स्थिति को सुधारने में मदद करती है। ब्राह्मी वटी का इस्तिमाल मस्तिष्क को शांत करने, स्मृति को सुधारने, और तनाव के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। क्या दवा का व्यक्तित्व प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक स्थिति और दोष प्रकृति पर निर्भर करता है। ब्राह्मी वटी का तनाव कम करने में मदद हो सकती है। तनाव एक माइग्रेन के महत्तवपूर्ण कारण हो सकता है, और ब्राह्मी वटी शरीरिक और मानसिक स्थिति को संतुलित करने में मदद करता है।
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माइग्रेन एक प्रकार का दर्द है जिसे आयुर्वेद से ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार माइग्रेन के दर्द को कम करने, चक्कर आने और उल्टी जैसी समस्याओं को रोकने, और दोष विकृति को दूर करने में सहायक हो सकता है। आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन, दिनचर्या (दैनिक दिनचर्या) को संतुलित करना, व्यायाम, योगासन, और प्राणायाम जैसे यौगिक अभ्यास का भी महत्तवपूर्ण भूमिका होती है। आहार-विहार पर भी ध्यान देना चाहिए, जैसे कि पित्त शमन आहार का सेवन करना, मसालेदार और चटपटा खाना से बचना, तनाव को कम करना, और प्रकृति के अनुकूल आहार-विहार का पालन करना।
हर व्यक्ति के शरीरिक और मानसिक स्थिति अलग होती है, इसलिए माइग्रेन के उपचार के लिए हर मरीज के लिए एक अलग दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता होती है। आपको एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए ताकि आपके लिए उचित उपचार और दवा का निर्धारण किया जा सके, आज ही संपर्क करे healthybazar पर ताकि हम आपकी आयुर्वेदिक उपचार से न ही केवल माइग्रेन के दर्द को काम करने में मदद करेंगे, बाल्की शारीरिक और मानसिक स्थिति को भी सुधारने में भी मदद करेंगे और आपको स्वस्थ जीवन जीने में मदद करेंगे।
Dr. Shivani Nautiyal is a renowned Ayurvedic physician, Panchakarma therapies specialist, and detox expert who has made significant contributions to the field of natural holistic healing and wellness. With her profound knowledge, expertise, and compassionate approach, she has transformed the lives of countless individuals seeking holistic health solutions. She is a Panchakarma expert, which are ancient detoxification and rejuvenation techniques. She believes in the power of Ayurveda to restore balance and harmony to the body, mind, and spirit.