Published 26-06-2024
COMMON FEVER
टाइफाइड, जिसे हम पुराना बुखार भी कहते हैं, एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया के कारण होता है। यह संक्रमण अधिक हानिकारक भोजन और पानी के माध्यम से फैलता है। इसके लक्षणों में लगतार बुखार, पेट दर्द, सर दर्द, थकावट, और कभी-कभी कब्ज़ या डायरिया शामिल हैं। आयुर्वेद इसे किस तरह से देखता है? आयुर्वेद में टाइफाइड को 'विषम ज्वर' या 'जीर्ण ज्वर' कहा गया है, जहां विषम का मतलब अनियमित है और ज्वर का मतलब बुखार है। आयुर्वेद के अनुसार, यह रोग त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन के कारण होता है।
Ayurveda में टाइफॉयड को 'विषम ज्वर' या 'जीर्ण ज्वर' की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेदा में टाइफॉयड के प्रकारों को सीधे तौर पर वर्गीकृत नहीं किया गया है, बल्कि इसे त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन और विभिन्न लक्षणों के आधार पर देखा जाता है। टाइफॉयड में गिलोय जूस के फायदे और टाइफाइड में अमृतारिष्ट के कई फायदे हैं।
1. वातज ज्वर (Vataja Jwara) : वात दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। इसके लक्षणों में कंपकंपी, सूखी त्वचा, और अनियमितता शामिल हैं।
2. पित्तज ज्वर (Pittaja Jwara) : पित्त दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। इसके लक्षणों में उच्च बुखार, प्यास, पसीना, और चिड़चिड़ापन शामिल हैं।
3. कफज ज्वर (Kaphaja Jwara) : कफ दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। इसके लक्षणों में भारीपन, ठंड लगना, और बलगम का अधिक उत्पादन शामिल हैं।
4. त्रिदोषज ज्वर (Tridoshaja Jwara) : यह ज्वर तब होता है जब तीनों दोष (वात, पित्त, कफ) असंतुलित होते हैं। इसके लक्षण अधिक गंभीर और मिश्रित होते हैं।
5. विषम ज्वर (Vishama Jwara) : यह ज्वर असमान्य तरीके से आता है, कभी-कभी बुखार बहुत तेज होता है और कभी-कभी बिल्कुल नहीं होता। यह अनियमितता अक्सर टाइफॉयड से जुड़ी होती है।
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लक्षण :
1. लगातार बुखार : शुरू में हल्का बुखार होता है जो धीरे-धीरे बढ़ता है, और अंत में यह 103°F से 104°F तक पहुंच सकता है।
2. पेट दर्द : पेट में दर्द और दर्द का अनुभव होता है, विशेष रूप से पेट के नीचे दर्द में। कमज़ोरी और थकान: रोगी को अत्यधिक थकान और कमज़ोरी महसूस होती है।
3. सर दर्द : रोगी को लगतार सर दर्द होता है।
4. कब्ज़ या डायरिया (कब्ज या दस्त) : कुछ लोगों में कब्ज़ होता है जबकी दूसरों में पतला दस्त होता है।
5. भूख न लगना : रोगी को भूख नहीं लगती और वजन घटने लगता है।
6. दाने : कुछ लोगों के शरीर पर, विशेष रूप से पेट और छत पर, छोटे-लाल दाने या दाने हो सकते हैं।
7. सूजन : लीवर और प्लीहा का सुजान हो सकता है, जो दर्द और सुविधा का कारण बनता है।
कारण :
1. दूषित भोजन और पानी : टाइफाइड का मुख्य कारण साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया से दूषित भोजन और पानी का सेवन है।
2. पूरी सफाई की कमी : अच्छी सफाई और स्वच्छता न होने पर ये बैक्टीरिया आसानी से फेल हो सकता है।
3. संक्रमित व्यक्ति से संपर्क : संक्रमित व्यक्ति के मल या मूत्र से संपर्क होने पर भी यह रोग फेल हो सकता है।
4. गंदा पानी : बैक्टीरिया से दूषित पानी पीने, खाना पकाने या कपड़े धोने से संक्रमण हो सकता है। बचाव और उपचार (रोकथाम और उपचार)
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आयुर्वेद में टाइफाइड (विषम ज्वर) का उपचार करने के लिए कई जड़ी-बूटियां और आयुर्वेदिक दवाएं प्रचलित हैं। ये दवाइयां शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाकर और दोषों (वात, पित्त, कफ) के संतुलन को सुधारकर टाइफाइड के लक्षणों को कम करती हैं। कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक दवाइयाँ और उनके फायदे दिए गए हैं:
1. अश्वगंधा : अश्वगंधा टाइफाइड में विशेष रूप से प्रभावी होती है क्योंकि इसमें विशेष औषधीय गुण होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है, थकावट और कमजोरी को दूर करती है, सूजन को कम करती है और पाचन को सुधारती है। इसके परिणामस्वरूप, अश्वगंधा टाइफाइड रोगी को तुरन्तआराम और राहत प्रदान करती है और उनकी सेहत को सुधारती है।
2 . गिलोय (टीनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) : गिलोय प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है और शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। गिलोय के पत्तों और तने का रस बुखार को कम करता है। डिटॉक्सिफिकेशन: ये शरीर के विशेष पदार्थों को निकालने में सहायक है, जो टाइफाइड के उपचार में मददगार है।
3 . तुलसी (ओसीमम सैंक्टम) : तुलसी के पत्तों में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो बैक्टीरिया के विकास को रोकने में मददगार होते हैं। इम्यून मॉड्यूलेटर: तुलसी इम्यून सिस्टम को संतुलित रखता है और शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। सूजन रोधी: तुलसी सुजान को काम करता है, जो टाइफाइड के लक्षणों को काम करने में मदद करता है।
4 . नीम (अज़ादिराच्टा इंडिका) : नीम के पत्तों का रस बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है। रक्त शोधक: नीम के खून को साफ करता है और शरीर के विषैले तत्वों को निकालता है। इम्युनिटी बूस्टर: नीम इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और इन्फेक्शन से बचाता है।
5. हल्दी ( करकुमा लोंगा) : हल्दी में करक्यूमिन यौगिक होता है जो रोगाणुरोधी होता है और बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है। हल्दी सुजन को काम करता है और पेट के दर्द और सुजन को शांत करता है। हल्दी रोग प्रतिरोधक शमता को बढ़ाता है और संक्रमण से लड़ने में मदद करता है।
6. त्रिफला : त्रिफला पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और कब्ज और गैस को दूर करता है। विषहरण: त्रिफला शरीर के विशेष पदार्थों को निकालने में मदद करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला: त्रिफला प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है और शरीर को संक्रमण से बचाता है।
7. शुद्ध शिलाजीत : शिलाजीत शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और थकावट को दूर करता है। शिलाजीत रोग प्रतिरोधक शमता को बढ़ाता है और शरीर को संक्रमण से बचाता है। शिलाजीत शरीर के विशेष तत्वों को निकालने में मदद करता है।
1. रसायन चिकित्सा : रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए रसायन दवाओं का सेवन किया जाता है।
2. पंचकर्म : शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए वमन, विरेचन और बस्ती का उपयोग होता है।
3. पथ्य-अपथ्य : रोगी को हल्का, पौष्टिक और पौष्टिक आहार देना चाहिए जैसे खिचड़ी, दाल, सब्जी और नारियल पानी। तली-हुई और मसालेदार चीज़ों से परहेज़ करें।
रोकथाम :
1. सफाई का ध्यान : हमेशा साफ-सूत्र पानी का सेवन करें और खाने को अच्छी तरह से पकाकर खाएं।
2. टीकाकरण : टाइफाइड के खिलाफ टीका उपलब्ध है जो संक्रमण के जोखिम को कम कर सकता है।
3. हाथ की स्वच्छता : बाथरूम का सामान करने के बाद और खाना बनाने से पहले हमेशा हाथ धोयें।
टाइफाइड के उपचार में आयुर्वेदिक दवाइयां शरीर की परेशानी को बढ़ाती हैं और दोषों के संतुलन को सुधारने में मदद करती हैं। ये दवाइयां सिर्फ टाइफाइड के लक्षण को कम करती हैं, शरीर को मजबूत बनाकर रोग प्रतिरोधक शामता को भी बढ़ाती हैं। आज ही आए healthybazar पर आयुर्वेदिक उपचार के लिए योग्य आयुर्वेदिक डॉक्टर से सलाह ले।