गैस्ट्राइटिस (अमलपित्त) आज के समय में पाई जाने वाली सबसे आम बीमारी है। आजकल ज्यादातर लोग अपनी प्रकृति (Physical Constitution) के बारे में कुछ नहीं जानते जिस के कारण वो गलत आहार और जीवन शैली का अभ्यास कर रहे हैं जिससे पाचन तंत्र में गड़बड़ी होती है। इसके कारण पित्त असंतुलित होता है और इसके सामान्य परिणाम पेट से जुडी अनेक बीमारियां अमलापित्त, खाने का डाइजेस्ट ना होना, भूख ना लगना, गैस्ट्राइटिस जैसे अनेक समस्या होते हैं। यदि यह पित्त ऊपर की ओर जाता है तो इसे "ऊर्ध्वगा अम्लपित्त" (vertical acidity) कहा जाता है।
आयुर्वेद और गैस
आयुर्वेद में अग्निमांद्य (अपच) को सभी रोगों का मूल कारण माना गया है। अग्निमांद्य (Low Digestive fire) के पीछे प्रमुख कारण आहार संबंधी आदतें हैं जैसे कि अध्ययन (भोजन के बाद खाना), विषमशन (अनियमित समय और मात्रा पर आहार), और गलत व्यवहार पैटर्न जैसे वेगधारणा (Suppression of natural urges) से अग्निमांद्य होता है और उस के कारण फिर पेट से जुडी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। पाचन संबंधी विकार सभी आयु के लोगो में होने वाला विकार है और सबसे ज्यादा लोग इसे नज़र-अंदाज़ करते है।
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गैस्ट्राइटिस के कारण
- शराब का सेवन: जब अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन किया जाता है, तो पेट की परत धीरे-धीरे ख़राब होने लगती है और pet me सूजन हो जाती है, जिससे गैस्ट्राइटिस होने का ख़तरा बढ़ता जाता हैं ।
- ऑटोइम्यून रोग: इस मामले में, शरीर की खुद की इम्युनिटी पेट की परत पर नुकसान करती है, जिससे गैस्ट्राइटिस हो जाता है।
- जीवाणु संक्रमण: एच. पाइलोरी जैसे बैक्टीरिया पेट के अल्सर का कारण बनते हैं जो पेट की परत को ख़राब कर देते हैं और गैस्ट्राइटिस का कारण बनते हैं।
- पित्त दोष: यकृत पित्त रस बनाता है जो खाने को पचाने में मदद करता है। पित्त की गति पेट से आंत की ओर होती है, और जब यह गति उलट जाती है, तो इस स्थिति को बढे हुए पित्त के रूप में जाना जाता है जो पेट की परत को खराब कर देता है और गैस्ट्राइटिस के होए का करण बनते है ।
- शारीरिक और मांनसिक तनाव - क्रोध, चिंता, उदासी, उत्साह - ये सभी भावनाएँ (और अन्य) आंत में लक्षणों को ट्रिगर कर सकती हैं। मस्तिष्क का सीधा प्रभाव पेट और आंतों पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, खाने का विचार ही भोजन के वहां पहुंचने से पहले पेट के रस को छोड़ सकता है।
गैस्ट्राइटिस के लक्षण
आयुर्वेद के अनुसार, ग्रहणी (duodenum) जो आंत का हिस्सा है, - जहां तीनों दोष- वात, पित्त और कफ पाए जाते हैं। यह अग्नि के आसन के रूप में भी कार्य करता है। जब दोषों में असंतुलन होता है, तो इसका प्रभाव अग्नि पर पड़ता है, जो अमलापित्त (गैस्ट्राइटिस) की ओर ले जाता है।
काला स्टूल
पेट में सूजन
उल्टी
भोजन के दौरान या बाद में पेट भरा हुआ महसूस होना
भूख में कमी
पेट का अल्सर
वजन कम होना
ऊपरी पेट में दर्द या बेचैनी
खून की उल्टी होना
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जठरशोथ से होने वाली जटिलता (Complications)
- अमसाय बॉईल या फोड़ा हो जाना
- मालाबसोर्पशन (Malabsorption)
- इसोफेजियल रिफ्लक्स
- सिर दर्द
- कमर दद
- डुओडेनाइटिस, पेप्टिक अलसर
गैस की आयुर्वेदिक औषधियां और दवाएं
- licorice (मुलेठी ) की जड़ पारंपरिक रूप से पेट में सूजन और गैस्ट्राइटिस को शांत करने के लिए अच्छा है। यह एच. पाइलोरी के विकास को भी रोकता है। एक चम्मच इस चूर्ण को लेकर आधा चम्मच शुद्ध घी और एक चम्मच शुद्ध शहद में मिला लें। इस दवा को रोजाना दो बार खाली पेट लें, एक बार सुबह नाश्ते से पहले और एक बार दोपहर को चाय से पहले जब पेट लगभग खाली हो।
- यदि आपको गैस्ट्राइटिस के साथ-साथ कब्ज भी हो रहा है, तो अविपट्टिकर चूर्ण आपकी पसंद की दवा है। सोते समय दो चम्मच लें। यह एसिड को ठीक करता है, और रेचक (Laxative) के रूप में काम करता है।
- ऐस्पैरागस रेसमोसस (शतावर) शीतल (Cold) होती है और शरीर की आंतरिक गर्मी को शांत करता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि इस पौधे की जड़ गैस्ट्राइटिस में एक प्रभावी दवा है। इस चूर्ण को तीन से छह ग्राम दिन में दो बार दूध या पानी से लेना चाहिए।
- एम्ब्लिका ऑफिसिनैलिस (आंवला) अपच, जलन, अरुचि, उल्टी और रक्तस्राव में उपयोगी पाया जाता है। आप इसे चूर्ण के रूप में दो चम्मच दिन में चार बार ले सकते हैं।
- धात्री लोहा, सूतशेखर रस, सुकुमार घृत, आदि कुछ ऐसी आयुर्वेदिक दवाएं हैं जो आमतौर पर गैस्ट्राइटिस के इलाज के लिए दी जाती हैं। इनका उपयोग करने से पहले हमेशा अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
- अन्य उपयोगी औषधियाँ कामदूध रस, लीलाविलास रस, चंद्रकला रस और अमलपिट्टान्तक रस हैं।
- एलोवेरा मिनरल्स और विटामिन से भरपूर होता है। शरीर में अम्लता को नियंत्रित करने के लिए आप इसके pulp का उपयोग कर सकते हैं। एलोवेरा का जूस सुबह और शाम खाना खाने से पहले पिएं।
गंभीर जठरशोथ के लिए आयुर्वेदिक उपचार
- अभ्यंग - गैस्ट्राइटिस की समस्या के लिए विशेष रूप से चंदन के तेल और लाक्षादि के तेल से पूरे शरीर की मालिश करने की सलाह दी जाती है। यह immunity को बढ़ता है और गैस्ट्राइटिस को रोकता है।
- वमन – इसमें उल्टी को लाने के लिए औषधीय जड़ी बूटियों का सेवन शामिल है। वामन पंचकर्म चिकित्सा में से एक है। यह कदम पेट से सभी विषाक्त पदार्थों को निकालता है और इस प्रकार पेट को साफ करने में मदद करता है। यह शरीर से अतिरिक्त कफ को भी खत्म करता है।
- विरेचन- इसमें गैस्ट्राइटिस के लिए जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग विरेचन के लिए किया जाता है। यह जीआई ट्रैक्ट से अत्यधिक बलगम (mucus) को हटाता है और इस प्रकार पाचन तंत्र में सुधार करता है।
- मेडिकेशन प्रोटोकॉल (रसायन) - यह शरीर के उपचार में सहायता के लिए क्षतिग्रस्त मांसपेशियों के ऊतकों (tissues) को ठीक करने के लिए विशिष्ट औषधीय जड़ी-बूटियों, विशिष्ट आहार, दिनचर्या और आसव और एरिस्टा का सेवन करते है।
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निष्कर्ष
जठरशोथ के लिए आयुर्वेदिक उपचार में आहार और जीवन शैली में परिवर्तन, हर्बल उपचार और विषहरण (Toxins) उपचार शामिल हो सकते हैं। यदि आप गैस्ट्राइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार पर विचार कर रहे हैं, तो एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करना महत्वपूर्ण है । अगर आप ज़्यादा जानकारी चाहते है तो हम आपको हमारे एक्सपर्ट (expert) डॉक्टर्स से संपर्क करने की सलाह देते है | www.healthybazar.com पर जाए और अपनी हर समस्या का समाधान नेचुरल तरीके और समस्या को जड़ से ख़तम करने का उपाए हमारे डॉक्टर्स से ले ।