Published 06-12-2022
GENERAL
आयुर्वेद में प्रकृति के पांच तत्व, जिन्हें पंच-तत्व या पंच-महाभूत के नाम से जाना जाता है, मानव शरीर का निर्माण करते हैं। भारतीय सिद्धांत की मान्यता है की ब्रह्मांड पांच तत्वों से बना है, जो जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी है। ये तत्व ब्रह्मांड में संतुलित अवस्था में मौजूद हैं। ऋषि मुनियों का मानना था कि सारी प्रकृति व्यक्ति का हिस्सा है, क्योंकि हम सभी प्रकृति से बने हैं, हमारा अस्तित्व प्रकृति में हैं और इसी प्रकृति मे ही पांच तत्वों को बहुआयामी (multidimensional) माना जा सकता है, इस आर्टिकल में हम पांच तत्वों को मानव जीवन में उनकी भूमिका के अनुशार मानव शरीर के साथ संबंधित कर रहे हैं।
वैदिक विज्ञान के अनुसार, जब आत्मा ( पुरुष) जीवन का रूप लेती है तो ये प्रकृति के पाँच तत्वों से बानी होती है, अर्थात - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। आयुर्वेद और योग सूत्र इनके महत्व के बारे में समझते हैं की ब्रह्मांड इन पांच तत्वों से बना एक एकीकृत इकाई (integrated unit) के रूप में काम करते है और पृथ्वी को संभालता है । सभी पदार्थ पाँच मूल तत्वों से बने हैं, उन्हें पंचमहाभूत के नाम से जाना जाता है। पौधों, जानवरों और मनुष्यों सहित सभी जीवित प्राणियों का आधार प्रकृति के पांच तत्व हैं |
1- अंतरिक्ष - कान (श्रवण / ध्वनि) से जुड़ा हुआ है
2- त्वचा के साथ वायु (स्पर्श)
3- आग (दृष्टि / रंग) के साथ
4- जीभ के साथ पानी (स्वाद)
5- पृथ्वी नाक के साथ (गंध)
परिणाम और चर्चा -
शरीर में ऊर्जा विभिन्न रूपों में मौजूद होती है जैसे जैव ऊर्जा (Bio Energy), विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा (electromagnetic energy), यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical energy) और रसायन ऊर्जा (Chemical energy) इन सब को सामूहिक रूप से शरीर की महत्वपूर्ण ऊर्जा कहा जाता है और इन पांच तत्वों में कोई भी असंतुलन शरीर में बीमारियाँ लाता है।
पांच तत्त्व और उनका क्षेत्र:
1- शरीर में पृथ्वी तत्व का असंतुलन आंत्र, बड़ी आंत, की बीमारियों से जुड़ा हुआ है और शरीर के ठोस हिस्से जैसे: हड्डियाँ, दाँत आदि, पैर, पैर, घुटने, रीढ़ की हड्डी, खाने के विकार और बार-बार होने वाली बीमारियाँ पृथ्वी तत्त्व की कमी कमी से होती हैं ।
2- जल तत्व का असंतुलन प्रजनन अंगो (Reproductive organs), प्लीहा (Spleen), भूख न लगना, मूत्र संबंधी विकारों से जुड़ा है, इस के आलावा मासिक धर्म संबंधी कठिनाइयाँ, यौन रोग (Sexual Problems) और शिरर में लचीलेपन (Flexibility) की कमी भी जल तत्त्व के असंचलन की वजह से होती हैं
3- शरीर में अग्नि तत्व के असंतुलन से खाने और पाचन संबंधी विकार, अल्सर, मधुमेह, मांसपेशियों में ऐंठन,
थकान और उच्च रक्तचाप (Hypertension) जैसे बीमारियाँ होती हैं
4- हवा तत्त्व में असंतुलन के कारण हृदय के विकार, फेफड़े, स्तन विकार, सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा, सर्कुलेशन प्रॉब्लम, इम्यून सिस्टम की कमी, कंधे और गर्दन में तनाव दर्द, छाती और शरीर में जलन होती हैं।
5- अंतरिक्ष तत्व के असंतुलन से थायरॉइड विकार, गले, भाषण, बोलने और कान से संबंधित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
जब तक आप के शरीर में प्रकृति के पंच तत्वों का संतुलन बना रहते है, तब तक वह सुरक्षित और स्वस्थ रहता है। जैसे ही किसी को इनमें से किसी भी तत्व में असंतुलन का सामना करना पड़ता है, वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है | यदि सभी चिकित्सक पांच तत्वों का अध्ययन करते हैं और प्रकृति और मानव शरीर के साथ उनके संबंध में विश्वास करते हैं और उन्हें अपने रोगियों के विभिन्न स्वास्थ्य समय के साथ जोड़ कर देखते हैं, तो यह बीमारियों को समझने और उपचार करने में सहायता करेगा।